मैंने अपनी माँ के चरणों में भगवान को देखा है
अपने सपनों को उसकी आँखों में खिलते सदाबहार देखा है
माँ के हाथों में अपने भविष्य का आकार देखा है
जागते हुए हर सपने को साकार देखा है
हवन की अग्नि में और अजान की ध्वनि में
गुरबाणी की शकल में और बुद्ध की अक्ल में
अंदर बाहर हर जगह उसे विलीन देखा है
मैंने अपनी माँ को कण-कण में देखा है
करते हो जिस शांति की कामना हर घड़ी
भरते हो जिस कामयाबी का घड़ा हर घड़ी
उस असीमित दौलत को बंटते अविराम देखा है
मैंने माँ की गोद में प्यार बेशुमार देखा है
लौटते थे जब स्कूल से शाम को
थके हारे बीस किलो वजन तले दबे हुए
उसके गरम खाने में हर ज़ख्म को खुशहाल देखा है
माँ की रोटी में मैंने खुदा का दुलार देखा है
जब होता था बीमार मैं
ताप उसका बढ़ जाता था
मेरी कराहों के साथ
वो आंसू टपकाती थी
उन ठंडी पट्टियों में जागा एक उफान देखा है
उसके सामने हारते हर तूफ़ान देखा है
हारा हूँ जब भी मैं दुनिया से
मैंने अपनी माँ में अटूट निश्चय का प्रमाण देखा है
खो जाता इस धरती का हर लाल
जो तू न होती सँभालने को
डूब जाते गम के समुद्र में
जो तू न होती निकालने को
इस कविता के माध्यम से
मैंने एक पैगाम भेजा है
दुनिया की हर माँ को मैंने
एक साष्टांग प्रणाम भेजा है