Corona Poem – मैं काल हूँ

आजकल अलग ही राह पर चल रहा हूँ
वजह नहीं कोई, अनायास ही चल रहा हूं
ज़िंदगी और मौत में फ़र्क नहीं कोई
सच पूछो तो, एक जिंदा लाश चल रहा हूँ

चारों तरफ मौत का सन्नाटा है
छाया है घनघोर अँधेरा
मौत बरस रही है बादलों से
इन खाली शहरों में बेकल अवाक घूम रहा हूँ

दूरदर्शी जब दूर तक न देख पायें
बुद्धिजीवी कोई खोज न कर पायें
जब रण में ही मानवता सुरक्षित हो
समझ लेना बनकर अमानवीय कोई बीमारी घूम रहा हूँ

उखड़ती सांसों और बिछड़ते इंसानों के बीच
खून से सराबोर घूम रहा हूँ
मैं काल हूँ
आजकल बहुत मशगूल घूम रहा हूँ

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